आनुवंशिकता: HERIDITY CLASS 10

 

आनुवंशिकी :- लक्षणों के वंशीगत होने एवं विभिन्नताओं का अध्ययन ही आनुवंशिकी कहलाता है ।

आनुवंशिकता :- विभिन्न लक्षणों का पूर्ण विश्वसनीयता के साथ वंशागत होना  आनुवंशिकता कहलाता है ।

विभिन्नता :- एक स्पीशीज के विभिन्न जीवों में शारीरिक अभिकल्प और डी ० एन० ए० में अन्तर विभिन्नता कहलाता है

विभिन्नता के दो प्रकार :-

·         शारीरिक कोशिका विभिन्नता

·         जनन कोशिका विभिन्नता

शारीरिक कोशिका विभिन्नता  :-

·         यह शारीरिकी कोशिका में आती है ।

·         ये अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित नहीं होते ।

·         जैव विकास में सहायक नहीं है ।

·         इन्हें उपार्जित लक्षण भी कहा जाता है ।

·         उदाहरण :- कानों में छेद करना , कुत्तों में पूँछ काटना ।

जनन कोशिका विभिन्नता :-

  • यह जनन कोशिका में आती है । 
  • यह अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं । 
  • जैव विकास में सहायक हैं । 
  • इन्हें आनुवंशिक लक्षण भी कहा जाता है । 
  • उदाहरण :- मानव के बालों का रंग , मानव शरीर की लम्बाई ।

विभिन्नता के लाभ :

·         प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्नता जीवों को विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं ।

·         उदाहरण :- ऊष्णता को सहन करने की छमता वाले जीवपणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है ।

·         पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता है ।

कुछ महत्वपूर्ण शब्द
1. क्रोमोसोम एक कोशिका के केंद्रक में मौजूद लंबे धागे जैसी संरचनाएं होती हैं जिनमें जीन के रूप में कोशिका की वंशानुगत जानकारी होती है।

2. डीएनए गुणसूत्र में एक रसायन है जो लक्षणों को कोडित रूप में रखता है।

3. जीन गुणसूत्र का वह भाग है जो एक विशिष्ट जैविक क्रिया को नियंत्रित करता है।

4. विपरीत लक्षण: दृश्यमान लक्षणों का एक जोड़ा जैसे लंबा और बौना, सफेद और बैंगनी फूल, गोल और झुर्रीदार बीज, हरे और पीले बीज आदि।

5. प्रमुख लक्षण: वह चरित्र जो स्वयं को (फीट) पीढ़ी में अभिव्यक्त करता है वह प्रमुख गुण है। उदाहरण : मटर के पौधे में लम्बाई एक प्रमुख गुण है।

6. अप्रभावी लक्षण: वह लक्षण जो स्वयं को अभिव्यक्त नहीं करता बल्कि एक पीढ़ी में मौजूद रहता है वह अप्रभावी गुण है। पूर्व। मटर के पौधे में बौनापन.

7. समयुग्मजी: एक ऐसी स्थिति जिसमें एक ही प्रकार के दोनों जीन मौजूद होते हैं, उदाहरण के लिए; एक जीव में लम्बाई के लिए दोनों जीन होते हैं, इसे टीटी के रूप में व्यक्त किया जाता है और बौनेपन के लिए जीन को टीटी के रूप में लिखा जाता है।

8. हेटेरोज़ीगस: एक ऐसी स्थिति जिसमें दोनों जीन अलग-अलग प्रकार के होते हैं, उदाहरण के लिए; एक जीव में जीन होता है Tt इसका मतलब है कि एक जीन लम्बेपन के लिए होता है और दूसरा बौनेपन के लिए केवल लम्बे चरित्र को व्यक्त करता है।

9. जीनोटाइप: उदाहरण के लिए यह किसी व्यक्ति की आनुवंशिक संरचना है; एक शुद्ध लम्बे पौधे को टीटी और संकर लम्बे पौधे को टीटी के रूप में व्यक्त किया जाता है।

10. फेनोटाइप: उदाहरण के लिए यह जीव का बाहरी स्वरूप है; टीटी संरचना वाला पौधा लंबा दिखाई देगा, हालांकि उसमें बौनेपन के लिए जीन मौजूद है।

11. वर्णों का समजात युग्म वे होते हैं जिनमें एक सदस्य का योगदान पिता द्वारा तथा दूसरे सदस्य का योगदान माता द्वारा होता है तथा दोनों में एक ही स्थान पर एक ही वर्ण के जीन होते हैं।




मेंडल का योगदान :-

·         मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए ।

·         मेंडल को आनुवंशिकी के जनक के नाम से जाना जाता है । मैंडल ने मटर के पौधे के अनेक विपर्यासी (विकल्पी ) लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं । उदाहरणत :- गोल / झुर्रीदार बीज , लंबे / बौने पौधे , सफेद / बैंगनी फूल इत्यादि ।

·          उसने विभिन्न लक्षणों वाले मटर के पौधों को लिया जैसे कि लंबे पौधे तथा बौने पौधे । इससे प्राप्त संतति पीढ़ी में लंबे एवं बौने पौधों के प्रतिशत की गणना की ।

मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन क्यों किया :- मेंडल ने मटर के पौधे का चयन निम्नलिखित गुणों के कारण किया

·         मटर के पौधों में विपर्यासी विकल्पी लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते हैं ।

·         इनका जीवन काल छोटा होता है ।

·         सामान्यतः स्वपरागण होता है परन्तु कृत्रिम तरीके से परपरागण भी कराया जा सकता है ।

·         एक ही पीढ़ी में अनेक बीज बनाता है ।

 

आनुवंशिकता के नियम :- मेंडेल ने मटर पर किए संकरण प्रयोगों के निष्कर्षो के आधार पर कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जिन्हें मेंडेल कें आनुवंशिकता के नियम कहा जाता है ।

मेंडेल के आनुवांशिक के नियम :- यह नियम निम्न प्रकार से हैं :-

1.  प्रभावित का नियम ।

2.  पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम ।

3.  स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम ।

 

प्रभाविता का नियम :- जब मेंडल ने भिन्न – भिन्न लक्षणों वाले समयुग्मजी पादपों में जब संकर संकरण करवाया तो इस क्रॉस में मेंडेल ने एक ही लक्षण प्रदर्शित करने वाले पादपों का ही अध्ययन किया । तो उसने पाया कि एक प्रभावी लक्षण अपने आप को अभिव्यक्त करता है । और एक अप्रभावी लक्षण अपने आप को छिपा लेता है । इसी को प्रभाविता कहा गया है और इस नियम को मेंडल का प्रभावतििा का नियम कहा जाता है ।

एकल संकरण ( मोनोहाइब्रिड ) :-

मटर के दो पौधों के एक जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास संकरण को एकल संकर क्रास कहा जाता है । उदाहरण :- लंबे पौधे तथा बौने पौधे के मध्य संकरण ।


 अवलोकन :-

( 1 ) प्रथम संतति पीढ़ी अथवा F में कोई पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था । सभी पौधे लंबे थे । इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है ।

( 2 ) F पीढ़ी में 3/4 लंबे पौधे वे 1/4 बौने पौधे थे ।

( 3 ) फीनोटाइप F – 3 : 1 ( 3 लंबे पौधे : 1 बौना पौधा )

          जीनोटाइप F – 1 : 2 : 1

  TT , Tt , tt का संयोजन 1 : 2 : 1 अनुपात में प्राप्त होता है ।

 निष्कर्ष :-

·         TT व Tt दोनों लंबे पौधे हैं , यद्यपि tt बौना पौधा है ।

·         T की एक प्रति पौधों को लंबा बनाने के लिए पर्याप्त है । जबकि बौनेपन के लिए t की दोनों प्रतियाँ tt होनी चाहिए

·         T जैसे लक्षण प्रभावी लक्षण कहलाते हैं , t जैसे लक्षण अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं ।

 

पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम / युग्मकों की शुद्धता का निमय :- युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी अलग हो जाते है । अर्थात् एक युग्मक में सिर्फ एक विकल्पी हो जाता है । इसलिए इसे पृथक्करण का नियम कहते है ।

युग्मक किसी भी लक्षण के लिए शुद्ध होते है ।



🔶 स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम :- यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है । इस नियम के अनुसार किसी द्विसंकर संरकरण में एक लक्षण की वंशगति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतः स्वतंत्र होती है । अर्थात् एक लक्षण के युग्मा विकल्पी दूसरे लक्षण के युग्मविकल्पी से निर्माण के समय स्वतंत्र रूप से पृथक व पुनव्यवस्थित होते है ।

द्वि – संकरण द्वि / विकल्पीय संकरण :-

🔹 मटर के दो पौधों के दो जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास





🔹 द्विसंकर क्रॉस के परिणाम जिनमें जनक दो जोड़े विपरीत विशेषकों में भिन्न थे जैसे बीच का रंग और बीच की आकृति ।

      गोल , पीले बीज : गोल , हरे बीज  :  झुरींदार , पीले बीज    :     झुरींदार , हरे बीज  

             9      :      3         :        3            :          1

           

इस प्रकार से दो अलग अलग ( बीजों की आकृति एवं रंग ) को स्वतंत्र वंशानुगति होती है ।

 

लिंग निर्धारण :- अलग – अलग स्पीशीज लिंग निर्धारण के लिए अलग – अलग युक्ति अपनाते है ।

 

 लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी कारक :-

·         कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण अंडे के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है उदाहरण :- घोंघा

·         कुछ प्राणियों जैसे कि मानव में लिंग निर्धारण लिंग सूत्र पर निर्भर करता है । XX ( मादा ) तथा XY (नर)



मानव में लिंग निर्धारण :-

आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं । सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की अपनी माता से X गुणसूत्र प्राप्त करते हैं । अत : बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है ।

जिस बच्चे को अपने पिता से X गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से Y गुणसूत्र वंशागत होता है , वह लड़का होता है ।


 

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